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उज्जैन में माँ विद्यावती द्वारा शहीद भगत सिंह पर विश्व के प्रथम महाकाव्य का ऐतिहासिक लोकार्पण

- डॉ. रमेश चंद्र

 

' सरल-कीर्ति ' ब्लॉग शृंखला के इस अंक में प्रस्तुत है डॉ. रमेश चंद्र का आलेख

उज्जैन से प्रकाशित साप्ताहिक परशुराम दर्शन के अंक 36 तथा

दिनांक 09 अप्रैल 2023 के सांध्य दैनिक उज्जैन साहित्य सांदीपनि से साभार

शीर्षक : भगत सिंह महाकाव्यऔर राष्ट्रकवि श्रीकृष्ण सरल

 
 

वह दिन बाबा महाकाल, वीर विक्रमादित्य एवं महाकवि कालिदास की पावन नगरी उज्जैन के लिए ऐतिहासिक दिन था, जब राष्ट्रकवि श्रीकृष्ण सरल के शहीद भगत सिंह के संपूर्ण जीवन एवं कार्यों पर रचित महाकाव्य "सरदार भगत सिंह" के लोकार्पण के लिए सिंहप्रसूता भगत सिंह की माँ विद्यावती देवी उज्जैन पधारी थीं। वह स्वर्णिम दिन था 9 मार्च 1965 का। मैं इस ऐतिहासिक दिन एवं इस महामहोत्सव का साक्षी था और इसे अपनी आँखों से छत्रीचौक के पार्क के फुटपाथ पर खड़ा हो कर देख रहा था।


अपार जनसमूह जिसकी संख्या लगभग 20-22 हजार होगी, माँ विद्यावती देवी के सम्मान में हर्षित होकर शहीद भगत सिंह की जय-जयकार कर रहा था। इतना ही नहीं सरदार भगत सिंह जिंदाबाद ! जिंदाबाद !! और भारत माता की जय ! के नारे लगाकर आकाश को गुंजित कर रहा था। मैं स्वयं भी नारे लगा कर उस अपार जनसमूह का साथ दे रहा था।


शहीद भगत सिंह की माँ के दर्शन के लिए जन समुदाय उमड़ पड़ा था। पूरा छत्रीचौक तथा उसके आस-पास का क्षेत्र खचाखच भरा था। थोड़ी देर बाद मंच पर माँ विद्यावती देवी, उनकी बहू ( शहीद भगत सिंह की भाभी ) सुकवि श्रीकृष्ण सरल तथा कुछ विशिष्ट अतिथि विराजमान हुए। जब लोग माँ विद्यावती देवी पर फूल बरसाने लगे तब सरलजी ने सभी से विनम्र भाव से कहा कि आप ऐसा न करें। इससे फूल माताजी की आँखों पर लग कर उन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं।


इस पर माँ विद्यावती देवी ने सरलजी को रोकते हुए कहा –


"ये लोग तो फूल ही फेंक रहे हैं। यदि भगत सिंह का नाम लेकर कोई मेरे ऊपर पत्थर भी फेंके, तो वे भी मुझे फूल जैसे ही लगेंगे।"


उनके ऐसा कहने पर लोगों ने जम कर तालियां बजाईं और माँ विद्यावती देवी की जय-जयकार होने लगी।


इसके बाद सरलजी ने अपनी पंजाब यात्रा के संस्मरण सुनाए। उन्होंने उस घटना का भी जिक्र किया, जिसमें भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की माताएं अपने वीर और बहादुर पुत्रों से बिना अंतिम भेंट किए जेल के गेट से लौट गईं। फिर उनका अपने पुत्रों से कभी मिलना नहीं हुआ।


यह संस्मरण सुन कर उपस्थित सभी लोगों की आँखें नम हो गईं।


अब कार्यक्रम के अनुसार भगत सिंह पर केंद्रित "सरदार भगत सिंह" महाकाव्य के लोकार्पण की बारी थी। सरलजी ने सुंदर और आकर्षक रंगीन पेपर के आवरण में महाकाव्य को सजा रखा था। जब वे महाकाव्य को आदरपूर्वक माँ विद्यावती देवी के सम्मुख लोकार्पण के लिए प्रस्तुत करने लगे तब माँ विद्यावती देवी ने अपने हाथ पीछे खींच लिए और सरलजी से बोलीं –


"तुम्हें पहले चंद्रशेखर आज़ाद पर ग्रंथ लिखना चाहिए था, क्योंकि भगत सिंह से पहले वह शहीद हुआ था। मेरा मुलाहिज़ा करते हुए तुमने भगत सिंह पर पहले ग्रंथ लिख डाला। अगर तुम अपने नगरवालों के सामने यह वादा करो कि तुम्हारा अगला ग्रंथ चंद्रशेखर पर लिखा जाएगा, तो मैं इस ग्रंथ की भेंट स्वीकार करूंगी, अन्यथा नहीं।"


माँ विद्यावती देवी की इस महानता पर सभी उपस्थित जन समुदाय ने एक बार फिर उनकी जय-जयकार की। भगत सिंह जिंदाबाद ! के फिर से नारे लगे। सब लोग मंत्रमुग्ध हो कर यह देख रहे थे।


इसके बाद सरलजी ने एक सिख सज्जन से उनकी कटार माँगी और उसकी तेज धार से अपने अंगूठे को चीर दिया। उस रक्त से सरलजी ने माँ विद्यावती देवी के ललाट पर तिलक लगा कर उन्हें वचन दिया कि उनका अगला महाकाव्य शौर्य के पर्याय चंद्रशेखर आज़ाद पर ही होगा।


इस पर सरलजी के लिए जय-घोष हुआ। इस प्रकार "सरदार भगत सिंह" महाकाव्य का बड़े ही गरिमापूर्ण तरीके से लोकार्पण संपन्न हुआ।


इस महाकाव्य में सरलजी ने शहीद-ए-आज़म भगत सिंह की माँ विद्यावती देवी के लिए लिखी गयी पंक्तियां दोहराईं -


शांति के वरदान-सी तुम धवल-वसना कौन ?

संकुचित है मौन भी लखकर तुम्हारा मौन ।

दूध की मुस्कान से सम्पृक्त्त-सित ये केश

सौम्यता पर शुभ्रता का ज्यों विमल परिवेश ।


देह पर चित्रित त्वचा की संकुचित हर रेख

लग रही वय-पत्र पर जो एक सुंदर लेख ।

या कि जीवन-भूमि पर पगडंडियों का जाल

चल रहा वय का पथिक संध्या समय की चाल ।


यह पाठ सुनकर उपस्थित समुदाय ने जोरदार करतल ध्वनि की और एक बार फिर भगत सिंह जिंदाबाद ! का नारा लगाया, जिसने पूरे आकाश को गुंजित कर दिया।


सरलजी ने एक वर्ष के भीतर ही चंद्रशेखर आज़ाद पर महाकाव्य लिख कर एवं स्वयं ही प्रकाशित करा कर माँ विद्यावती देवी के श्रीचरणों में समर्पित कर अपने वचन को पूरा किया।


भगत सिंह महाकाव्य के लोकार्पण के समय माँ विद्यावती देवी ने जो शब्द कहे थे वे आज भी उज्जैन नगरवासियों के कानों में गूंज रहे हैं –


"मैंने जिसे लाहौर में खोया था, उसे उज्जैन में पा लिया है। मुझे लगता है कि ग्रंथ के रूप में मेरा बेटा भगत सिंह मेरी गोद में आ बैठा है। मुझे लगता है, जैसे मेरा बेटा भगत मुझसे बातें कर रहा है।"


यहाँ मैं स्व. श्रीकृष्ण जी सरल के बारे में कुछ कहना चाहता हूँ। वह यह है कि श्री सरलजी ने अपने जीवन में 15 महाकाव्यों की रचना की। उनका अधिकांश गद्य व पद्य साहित्य उन अमर बलिदानियों पर केंद्रित इतिहास है, जिन्होंने अपने देश की आज़ादी के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। 16वां महाकाव्य लेखक के निधन के समय लेखनाधीन था। भगत सिंह पर रचित महाकाव्य देश का पहला ऐसा महाकाव्य है, जो उनके जीवन और कार्यों पर केंद्रित है। महाकाव्य लेखन की प्रेरणा सरलजी को भारतरत्न राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन से मिली थी।


इस प्रेरणा के फलस्वरूप सरलजी भगत सिंह के पैतृक गांव खटकड़कलां गये थे और वहां पर उन्होंने भगत सिंह की माँ विद्यावती देवी से आशीर्वाद लेकर इस ग्रंथ की रचना की। इन सबके संस्मरण सरलजी ने अपने सृजन कोष में संचित कर रखे हैं।


सरलजी ने भगत सिंह की माँ विद्यावती देवी के हाथों से बनी रोटी भी खाई, जिस पर माताजी ने ताजा मक्खन लगाया था। कितने ही संस्मरण सुना कर माँ विद्यावती देवी ने सरलजी को मालामाल कर दिया था।


यहाँ इस बात का उल्लेख करना आवश्यक है कि सरलजी ने इस महाकाव्य लेखन के लिए भगत सिंह के परिजनों, स्वजनों तथा साथियों से भारत भर में घूम-घूमकर उनके साक्षात्कार लिए और वह सब जानकारी, दस्तावेज तथा साहित्य प्राप्त कर उसका अनुशीलन किया। यह एक कठिन, जोखिम भरा काम था, जिसे अपने धैर्य, साहस और लगन से सरलजी ने पूरा किया। यह जिजीविषा ही थी, जिसे सरलजी ने कर दिखाया।


सरलजी ने अपने लेखन में सरदार भगत सिंह,चंद्रशेखर आज़ाद, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, अशफ़ाक़-उल्ला खा़ँ, करतारसिंह सराभा, लोकमान्य तिलक, मेडम भीकाजी कामा, स्वामी विवेकानंद, अहिल्याबाई होलकर, पेशवापुत्री मैना, गोस्वामी तुलसीदास, रामायण, सीतायन, हनुमानजी तथा योगेश्वर श्रीकृष्ण को अपना विषय बनाया।


सरलजी ने अपनी कॉलेज के अध्यापकीय जीवन से समय बचाकर क्रांतिकारियों की जीवन-गाथाएँ स्वयं के व्यय से लिखीं और प्रकाशित कराईं। यह एक ऐसा महान और जटिल कार्य था, जिसे हर कोई नहीं कर सकता। यह बहुत त्याग और तपस्या के बाद ही संभव हो सकता है और सरलजी ने यह सब बड़े मन से किया। शहीदों व क्रांतिकारियों पर यह अमूल्य एवं महत्वपूर्ण कार्य जो श्री सरलजी ने किया है, आनेवाली नयी पीढ़ियों के लिए सदैव प्रेरणास्रोत बना रहेगा।


सरलजी ने 15 महाकाव्यों सहित 125 ग्रंथों की रचना की। लगभग 7 दशक तक उन्होंने महान देशभक्तों, स्वतंत्रता सेनानियों, देश के महान चरित्रों पर लेखन की साधना में रत रहते हुए वर्ष 2000 में बाबा महाकाल के श्रीचरणों में स्थायी शरण प्राप्त की।


विभिन्न संस्थाओं द्वारा भारत-गौरव, राष्ट्र-रत्न, राष्ट्र-कवि, क्रांति-कवि, क्रांति-रत्न और मालव-रत्न आदि अलंकरणों से सम्मानित देश के ऐसे सपूत, महान कवि एवं लेखक स्व. श्रीकृष्ण सरलजी को मैं कोटि-कोटि नमन् करता हूँ।

 

डॉ. रमेश चंद्र

स्वतंत्र लेखन, से.नि. वाणिज्यिक कर अधिकारी, इन्दौर

लगभग आधा दर्जन प्रकाशित कृतियाँ एवं सम्पादन कार्य

साहित्य रत्न, हिन्दी भाषा विभूषण सम्मान, कृति कुसुम सम्मान

प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं की ओर से सर्वश्रेष्ठ पत्र लेखन पुरस्कार

'कुछ कमा तो रहा है’ लघुकथा का नाट्य मंचन

आकाशवाणी इंदौर से व्यंग्य रचना का पाठ

लेखक ई-परिचय - https://www.shrikrishnasaral.com//profile/ramesh-c

email : blog@shrikrishnasaral.com

 

विशेष सूचना –

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