- डॉ. देवेन्द्र दीपक
' शब्द-साधक ' ब्लॉग श्रृंखला के इस अंक में प्रस्तुत है डॉ. देवेन्द्र दीपक की रचना
संदर्भ : महान क्रांतिकारी – वीर विनायक दामोदर सावरकर की पुण्य-तिथि 26 फरवरी
" सौ साल बाद भारत सावरकर को पहचानेगा " – राम मनोहर लोहिया
" ॐ सहिष्णु ! ॐ सहिष्णु ! ॐसहिष्णु ! " | | 卐 | | यह क्या - बन्धु, जरा पास आ मेरी बात ध्यान से सुन - सुबह शाम आठों याम सहिष्णुता का यह अखंड जाप भविष्य में एक दिन अवश्य बनेगा घोर संताप कुछ स्वयं हमने कुछ परकीयों ने हमारे लिए रचा सहिष्णुता का एक मकड़जाल! किसी कटु अनुभव के कारण हम कभी कुछ हुए विदग्ध परकीयों ने पंचम स्वर में 'सहिष्णुता'को हमारी महिमा मंडित किया एक षडयंत्र की तरह-- शेर जागने न पाए! हम फिर आत्ममुग्ध हो विदग्धता छोड़ अलापने लगे वही राग! उबरते उबरते फिर डूबने लगे! इतिहास में मत जी लेकिन इतिहास के साथ जीना जरूर सीख पूरा इतिहास पढ़ । प्रश्नवाचक बनकर पढ माना कुछ काले पृष्ठ हैं कुछ स्वर्णिम अध्याय भी तो हैं । अपना भूगोल सँभाल पुनः अपना अजेय दुर्ग गढ़ पहले सीढ़ी पर बैठे साँप को मार फिर सीढ़ियों पर चढ़ । बन्धु , कुछ पल के लिए शान्त चित्त से सहिष्णुता से हुए लाभ हानि का हिसाब लगा ! देख, आँख खोलकर देख तेरी सहिष्णुता एक गोरखधंधा है तू मानसी अंधा है! तू अपनों के लिए घोर असहिष्णु परकीयों के लिए परम सहिष्णु एक ओर धर्म भीरु दूसरी ओर धर्मान्ध कहो रहीम कैसे निभै केर बेर कौ संग! अनुदार के लिए उदार होना छोड़ अपनों से मुहुँ मत मोड़ ! अहिंसा हमें भी प्रिय है हमारा मूल हिंसक नहीं लेकिन सामने की स्थिति को सापेक्षता में देखना सीख ! अति की मति से बच शक्ति का नया छंद रच ! प्रतिरोध का अपना एक दर्शन आज उसका कर संदर्शन ! कुछ इन चींटियों से सीख -- वे चुपचाप अपना काम करती हैं उसे मालूम है कि हम उसे मसल सकते हैं लेकिन वह काटेगी जरूर सांप भी उसकी बांबी में जाने से डरता है यह संगठन की अमरता है ! कुछ मधुमक्खी से सीख-- मधुमक्खी के छत्ते पर पत्थर मार कर देख और फिर उसके बाद का मंज़र देख हर मक्खी दौड़ा दौड़ा कर डंसेगी ! कुछ अपनी गाय से ही सीख-- भोली-भाली,सीधी-सादी शांत,शील,बेचारी विशेषणों से विभूषित गाय ! उसके बच्चे पर तनिक क्रूरता करके देख रस्सा तुड़ाकर वह गाय सींग से चीर देगी तेरा पेट! हमारी संस्कृति का बोध वाक्य-- अत्याचार करना पाप है! लेकिन लुटेरे को लुटेरा हमलावर को हमलावर क्रूर को क्रूर विलासी को विलासी दुष्ट को दुष्ट सितमगर को सितमगर न कहना और सितम को गर्दन झुकाकर सहना बंधु, पाप नहीं, महापाप है! राम कथा का कृष्ण कथा का यही सार है ! क्षमा का उत्तर क्षमा खांडव का उत्तर खांडव लास्य नहीं, तांडव! | किसी कपटी के कपट में हमारी कभी कोई बेटी अगर फंस गयी उसे खंडहर समझकर अकेला मत छोड़ उसे कोस मत उसे संरक्षण दे ! छिन्न तार उसकी अस्मिता को अपनी ममता दे संभलने का अवसर दे आत्मीय परिवेश दे अंतरंग परिसर दे । भूख से भय से लोभ से अपमान और उपेक्षा से हमारे पाले से बाहर चला गया जो बंधु, वह कोई भेड़ नहीं है हमारी भुजा है ! हमारा ईश्वर पतित-पावन सवर्ण के लिए जो पतित-पावन अछूत के लिए पतित-पावन क्यों नहीं ? हमारा धर्म-बंधु अछूत देव-दर्शन समान पनघट समान मरघट के लिए आतुर अधीर ! लांछित के मनोविज्ञान को समझ देवदर्शन के लिए आज का आग्रही कल बनेगा दुराग्रही! बंधु ,याद रख परकीय बन वही वंचित कल हमारे मान-बिन्दुओं को ध्वस्त करने में नहीं चूकेगा! हमारा इतिहास हमारे जातीय दंभ पर थूकेगा! ओ मेरे सवर्ण बंधु, अपने जातीय द॔भ को छोड़ । जातीय दंभ यक्ष्मा है और यक्ष्मा संक्रामक रोग है ! सामाजिक आरोग्य की चिंता कर - जो अपना है उसे सहेज, जो चला गया उसे वापस ला । उसे प्यार भरा संसार दे उसे अपने पास रख उसे अपनी थाली दे उसका दिया दाना चख ! आत्मवंचना से बच परकीयों के प्रपंच को पहचान धर्मांतरण का प्रतिफल राष्ट्रान्तरण! और राष्ट्रान्तरण किसी दूसरे का नहीं अपना मरण है ! अपने पतन के कारण खोज अपने उत्थान के बारे में सोच काल की गति को समझ काल कोअपना बनाने कीकलासीख राष्ट्र-देव के भाल पर चिंता की वक्र रेखा देख समाज-पुरुष की गति को अवरुद्ध करते बंधनों को देख-- स्पर्श-बंधन रोटी-बंधन बेटी-बंधन धंधा-बंधन वेद-बंधन सिंधु-बंधन शुद्धि-बंधन बंधु, क्या कहूं, बंधन ही बंधन ! मति के साथ युक्तिपूर्वक धैर्य से जब जहां जो आवश्यक हो उसे जोड़ना सीख छोड़ना सीख मोड़ना सीख तोड़ना सीख! जो साथ दे उसे साथ लेकर चल, जो साथ न दे उसे छोड़कर चल, जो विरोध करे उसे चुनौती देकर चल, लेकिन चल ! गंतव्य की प्राप्ति तक चल अविराम,अविचल गति से चल दास की तरह नहीं अधीक्षक की तरह चल ! मैंने जो कहा क्रांति-मेघ, रक्त-कमल, अभय-मूर्ति, संकल्प-सूर्य जाति- वैद्य लोक नायक 'विनायक' के हवाले से कहा : पूजा में रखे शंख को उठा शपथ ले और शंखनाद कर पूरी शक्ति से उच्चार - ॐ जयिष्णु, ॐ जयिष्णु, ॐ जयिष्णु ॐ वर्धिष्णु,ॐ वर्धिष्णु, ॐ वर्धिष्णु ॐ सहिष्णु, ॐ सहिष्णु,ॐ सहिष्णु | | 卐 | | ••• विनायक दामोदर सावरकर ••• जन्म 28 मई 1883 निधन 26 फरवरी 1966 |
डॉ. देवेन्द्र दीपक
विख्यात साहित्यकार, शिक्षाविद एवं संस्कृतिधर्मी, भोपाल
पूर्व निदेशक, म.प्र. साहित्य अकादमी व प्रधान सम्पादक 'साक्षात्कार'
मध्यप्रदेश शिखर साहित्य सम्मान एवं साहित्य वागीश सम्मान दिल्ली
लंदन, सूरीनाम, न्यूयार्क, मॉरीशस में आयोजित विश्व हिन्दी सम्मेलनों में सहभागिता
लेखक ई-परिचय - https://www.shrikrishnasaral.com//profile/dev-deepak
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