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शहीदों का चारण : उनकी यश–गाथा गाते–गाते चला गया

अपडेट करने की तारीख: 25 दिस॰ 2024

श्री कृष्णकुमार अष्ठाना

 

' सरल-कीर्ति ' ब्लॉग शृंखला के इस अंक में प्रस्तुत है

वरेण्य लेखक, सम्पादक एवं प्राचार्य श्री कृष्णकुमार अष्ठाना का श्रद्धांजलि आलेख

लोकप्रिय बाल मासिक ‘देवपुत्र’ अक्टूबर–2000, पृष्ठ 3-4 से -साभार-

शीर्षक : शहीदों का चारण: उनकी यश–गाथा गाते–गाते चला गया

लेखक व सम्पादक : कृष्णकुमार अष्ठाना  | प्रबन्ध सम्पादक : विकास दवे

 
 

शहीदों का चारण : उकी यश–गाथा गाते–गाते चला गया


यह हिन्दी साहित्य की ही उपलब्धि है कि एक कवि ने “पुष्प की अभिलाषा” के माध्यम से अपने मन की बात कहकर साहित्य में अमरता प्राप्त कर ली तो एक दूसरे ने “शहीदों का चारण” बनकर और उनकी यश–गाथाओं को लिख–लिखकर और देश के कोने–कोने में गा–गाकर साहित्य में अमरत्व प्राप्त कर लिया।

 

देवपुत्र के पाठकों के लिये यह “शहीदों का चारण” कोई अपरिचित व्यक्ति नहीं है। यह वह पुरुष–सिंह है जिसने अपनी दहाड़ों से युवाओं को जगाया है – प्रौढ़ों को चैतन्य किया है और बालों को स्नेह लुटाया है। मैं उनके इन सारे स्वरूपों का साक्षी हूँ। देवपुत्र पर उनका विशेष स्नेह था। अपनी अस्वस्थता के बावजूद भी वे उसके क्रान्ति–अंक का विमोचन करने के लिये इन्दौर प्रेस क्लब के कार्यक्रम में पधारे थे और उन्होंने “इसे बालकों के लिये क्रान्तिकारियों पर एक साथ इतनी सामग्री प्रस्तुत करनेवाला पहला प्रयास बताया था।”

(चित्र में : स्मृतियाँ जो सदैव अक्षुण्ण रहेंगी देवपुत्र के क्रान्ति–अंक 1996 का विमोचन करने श्री सरलजी के साथ में हैं श्री प्र.शं. काले, श्री शां.शं. भावलकर तथा श्री अष्ठाना)

 

शहीदों के इस चारण का नाम था – श्रीकृष्ण सरल। चार वर्ष पूर्व अपने क्रान्ति–अंक में हमने उन पर विशेष सामग्री छापी थी – तब वे यद्यपि काल से लड़ रहे थे, पाँच हृदयाघात हो चुके थे, किन्तु महाकाल की नगरी का निवासी होने के कारण काल से हार मानने की तैयारी बिल्कुल नहीं थी और हमें भी कहाँ अनुमान था कि इतनी जल्दी उन्हें श्रद्धांजलि देने का अवसर आ जायेगा। किन्तु गत मास उनका भौतिक शरीर हमसे विदा ले गया। आयु के लगभग 80 वर्षों में से तीन चौथाई से भी अधिक समय उन्होंने क्रान्ति–लेखन पर लगाये और विश्व कीर्तिमान स्थापित किया – लेखन का। लगभग 125 पुस्तकें और उनमें भी 15 महाकाव्य लिखनेवाला यह विश्व का पहिला महाकवि था। दुनिया का सबसे बड़ा प्रबन्धकाव्य आर क्रान्तिकारियों पर सर्वाधिक लेखन करके विश्व साहित्य में अद्वितीय स्थान बनाया था।

 

 किन्तु इतना लिखकर और गा–गाकर सुनानेवाले कवि की अपनी मौन तपस्या से बहुत कम लोग परिचित हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि सरकारी नौकरी करते हुए और अपनी गृहस्थी पालते हुए भी वे क्रान्तिकारियों पर सामग्री एकत्र करने के लिये देश–विदेश अपने ही व्यय पर भटके और पत्नी के गहने तथा बच्चों के कपड़े बेचकर क्रान्तिकारियों पर लिखे अपने साहित्य को प्रकाशित किया और हाथ ठेले पर रखकर स्वयं उसे चलाते हुए आवाज लगा–लगाकर उसे बेचा। दुनिया ने आज तक नहीं देखा कि कहीं पर भी किसी एक व्यक्ति ने अपनी नई पीढ़ी को जगाने का ऐसा प्रयास किया हो। आयु के एक–एक पल का उपयोग करते हुए उन्होंने रात और दिन के 24 घण्टों में से 20–20 घण्टे लगातार बैठकर क्रान्तिकारियों पर लिखा और रक्त की एक–एक बूँद सुखाकर जो कर्ज राष्ट्र ने खाया था उसे चुकाने का प्रयत्न किया।

 

इस कृतज्ञ देश ने तो उनके जीते–जी और मरने पर भी बहुत सम्मान दिया–किन्तु क्रान्ति–गंगा के इस भागीरथ की भारत सरकार और राज्य सरकार कोई सम्मान नहीं दे पाईं। याद आती है उनकी पंक्ति –

 

पीढ़ी कृतघ्न लोगों की नहीं कही जाए

इसलिए याद करता मैं उन दीवानों को,

अपने प्राणों के फूल समर्पित करके जो

 दे गए प्राण, दे गए महक बलिदानों को।

न्योछावर सौ-सौ महाकाव्य उनके ऊपर, मैं महाकाव्य के मात्र इशारे लिखता हूँ।

… अपने गीतों से गंध बिखेरूं मैं कैसे, मैं फूल नहीं काँटे अनियारे लिखता हूँ।

 

जिनकी लाशों पर चलकर आजादी आई उनका स्मरण कराकर श्रद्धेय सरलजी तो चले गए किन्तु इस स्मृति को हमें सदा ताजा ही रखना होगा। न निभाया हो सरकार ने इस स्मरण करानेवाले के प्रति अपना दायित्व – किन्तु हमें तो निभाना ही है उनकी यश–प्रतिमा को अपने हृदय–पटल पर स्थापित करके।

 

और अंत में तेरा तुझको अर्पण के भाव से नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के लिये लिखी सरलजी की पंक्तियों में उनको ही श्रद्धांजलि अर्पित हैं –

 

कहते हैं लोग

तुम नहीं हो हमारे बीच

कौन जाने वासी तुम हुए किस धाम के?

निश्चित है एक बात

निर्विवाद सत्य यह

मातृभूमि छोड़ तुम्हें स्वर्ग भी न भाएगा

गोद मातृभूमि की थी प्राणों से अधिक प्रिय

भारत की भूमि तुम्हें बढ़कर ब्रह्माण्ड से

संपदा त्रिलोक की नगण्य थी तुम्हारे लिए

सब कुछ तुम्हारे लिए माटी मातृभूमि की।

 

सरलजी के विश्व–कीर्तिमान -

  • विश्व में सर्वाधिक महाकाव्यों का सृजन

  • एक व्यक्ति द्वारा लिखा गया विश्व का सबसे बड़ा प्रबन्धकाव्य

  • क्रान्ति पर विश्व में सर्वाधिक लेखन

  • राष्ट्र–भक्ति पर विश्व में सर्वाधिक काव्य रचना

  • विश्व में सर्वाधिक सूक्ति–काव्य

  • युवा–शक्ति को अपने लेखन के माध्यम से जगाने का सर्वाधिक प्रयास

 

कृष्णकुमार अष्ठाना

 लेखक,सम्पादक एवं प्राचार्य

आपातकाल (सन् 1975) में जेल में निरुद्ध

सम्पादन: दैनिक स्वदेश, इन्दौर, बाल मासिक ‘देवपुत्र', ‘जागृत युगबोध' मासिक

सदस्यता: भारतीय बाल कल्याण एवं साहित्य परिषद कार्यकारिणी आकाशवाणी से अनेक सामयिक विषयों पर वार्ताएँ

विश्व हिन्दी सम्मेलन (मॉरीशस) में बाल साहित्य संस्था के अध्यक्ष

देवी अहिल्या गौरव सम्मान, अनेक राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मान, सम्पादक रत्न सम्मान, उ.प्र

साहित्य कलश, इन्दौर द्वारा श्रीकृष्ण सरल सम्मान

लेखक ई-परिचय - https://www.shrikrishnasaral.com/profile/kka/profile

 

विशेष सूचना –

प्रस्तुत ब्लॉग-शृंखला में प्रकाशित आलेखों अथवा रचनाओं में अभिव्यक्त विचार लेखक के निजी हैं । उसके लिए वे स्वयं उत्तरदायी हैं । सम्पादक और प्रकाशक उससे सहमत हों, यह आवश्यक नहीं है । लेखक किसी भी प्रकार के शैक्षणिक कदाचार के लिए पूरी तरह स्वयं जिम्मेदार हैं ।

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