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क्रान्तिरथी ब्लॉग

अपडेट करने की तारीख: 29 जन॰

भारतीय क्रान्तिकारियों पर केन्द्रित प्रामाणिक लेख, संस्मरण, शोधपत्र आदि को वेबसाइट पर 'क्रान्तिरथी ब्लॉग' के माध्यम  से सहेजा जा रहा हैसंबंधित विषय पर रचनाएँ  blog@shrikrishnasaral.com पर आमंत्रित हैं !

- डॉ. धर्मेन्द्र सरल शर्मा

अध्यक्ष, राष्ट्रकवि श्रीकृष्ण सरल साहित्य समिति

 
 

गाँधी की आँधी

- राष्ट्रकवि श्रीकृष्ण सरल -


भारत के  सौभाग्य–गगन  पर  घिरे  मेघ जब काले–

घोर  निराशा  के  तम  ने,  जब   अपने   डेरे  डाले–

उठी एक तब प्रबल आत्म–बल की हहरा कर आँधी,

युग ने उसे पुकारा कहकर  जन–अधिनायक  गाँधी।


फेंक  दिए  तमगे  उतार  सब  ने  नौकरशाही  के

प्रस्तुत  सभी  हो  गए  चलने  पीछे  उस राही के,

असहयोग  के साथ  सभी ने  बहिष्कार अपनाया

छोड़–छोड़ पदवियाँ और पद सब ने रोष जताया।


उठी  चेतना  की  जो  लहरें,  फैल  गईं  घर–घर  में

त्याग–भावना  समा  गई  थी  जन–जन के अंतर में,

जाने  कैसा  सम्मोहन  था  उस  मोहन  के  स्वर  में

विद्यालय निज छोड़, छात्र  भी  कूदे  मुक्ति–समर में।


मुक्ति–दूत  बनकर  गाँधी  देता था यह आश्वासन–

वह  दिन दूर नहीं, जब होगा  यहाँ  हमारा शासन,

छिड़े  तीव्र  आन्दोलन, माँ के बन्धन कट सकते हैं

दुर्दिन के घन  छिन्न–भिन्न हो पल में हट सकते हैं।


 

 झुको न किसी अनय के आगे

- राष्ट्रकवि श्रीकृष्ण सरल -


झुको न किसी अनय के आगे।

तनो न किसी विनय के आगे।

झुको न किसी अनय के आगे।

अन्यायी बलवान भले हो

उसका पक्ष सदा निर्बल है,

उसका दमन क्रूर हो सकता

किंतु पतन भी रहा अटल है।

विजय तुम्हारी इसमें है, तुम

झुको न उसकी जय के आगे।

झुको न किसी अनय के आगे।


चमक–दमक तो क्षण–भंगुर है

पर असत्य का मुँह काला है,

सत्य भले धूमिल हो, पर वह

सदा सत्य है, उजियाला है।

निश्चय का संबल लेकर तुम,

झुको नहीं संशय के आगे।

झुको न किसी अनय के आगे।

तुमको ऐसा बनना है, जो

मरकर भी तुम अमर रह सको,

तुमको ऐसा बनना है, जो

तुम–आँधी तूफान सह सको।

सीना ताने खड़े रहो तुम,

झुको न किसी प्रलय के आगे।

झुको न किसी अनय के आगे।


 


मुझमें ज्योति और जीवन है

- राष्ट्रकवि श्रीकृष्ण सरल -

 

मुझमें ज्योति और जीवन है

मुझमे यौवन ही यौवन है।

मुझमें ज्योति और जीवन है।


मुझे बुझा कर देखे कोई

बुझने वाला दीप नहीं मैं,

जो तट पर मिल जाया करती

ऐसी सस्ती सीप नहीं मैं।

शब्द-शब्द मेरा मोती है,

गहन अर्थ ही सच्चा धन है।

मुझमें ज्योति और जीवन है।।


रुक जाने को चला नहीं मैं

चलते जाना जीवन-क्रम है,

बुझ जाने को जला नहीं मैं

जलते जाना नित्य नियम है।

मैं पर्याय उजाले का हूँ,

अंधियारे से चिर-अनबन है।

मुझमें ज्योति और जीवन है।।


हलकी बहुत मानसिकता यह

शिकवे या शिकायतें करना,

हलकी बहुत मानसिकता यह

हलकेपन पर कभी उतरना।

आने नहीं दिया मैंने यह,

अपने मन में हलकापन है।

मुझमें ज्योति और जीवन है।।


वर्ष, मास, दिन रहा भुनाता

हर क्षण का उपयोग किया है,

तुम हिसाब कर लो, देखोगे

लिया बहुत कम, अधिक दिया है।

यही गणित मेरे जीवन का,

यही रहा मेरा चिन्तन है।

मुझमें ज्योति और जीवन है।।


 

राष्ट्र–ध्वज


राष्ट्रकवि श्रीकृष्ण सरल


सर्वोच्च   भावनाएँ    जो    राष्ट्रीय   होतीं

उनका सम्मानित रूप राष्ट्र–ध्वज होता है,

जो लोक–आस्थाएँ होतीं  बिखरी–बिखरी

वह ध्वज ही होता है, जो उन्हें पिरोता है।


सर्वोच्च मान  है  दिया  राष्ट्र–ध्वज को जाता

उसकी छाया शुभ, शीतल, सुखकर होती है,

उसकी  छाया   सद्भाव  समर्पण  की  प्रेरक

वह छाया  जीवन से  भी  प्रियतर  होती है।


विश्वास, धर्म, मत आदि भले हों पृथक–पृथक

वे  सभी  राष्ट्र–ध्वज की  छाया  में  पलते  हैं,

वे   सौमनस्य   से   जुड़े   हुए   रहते  हैं  सब

वे लिए  हाथ  में  हाथ, साथ  सब  चलते  हैं।


वह किसी राष्ट्र का हुआ राष्ट्र–ध्वज ही करता

जिसके  नीचे,  दुश्मन  से   युद्ध  लड़े  जाते,

बलिदान  किए जाते  जिसके नीचे  अगणित

हैं कीर्तिमान भी  अगणित  किए  खड़े जाते।


कितना गर्वित, कितना हर्षित  होता है मन

जब कभी राष्ट्र का ध्वज फहराया जाता है,

जब–जब  लहराता  मुक्त हवाओं में है वह

आनंद  कल्पित  अकथ  उठाया  जाता है।

 

एक ग़ज़ल शहीदों के नाम


डॉ. धर्मेन्द्र सरल शर्मा

पुत्र, राष्ट्रकवि श्रीकृष्ण सरल


वक़्त की रफ़्तार को पढ़कर जो आगे हो गए

वो  ग़ुलामी  के  निशाँ अपने  लहू से धो गए।

 

कुछ तो मंज़िल तक पहुँच जलसों की ज़ीनत बन गए

और   कुछ   गुमनामियों   के   रास्तों  में   खो   गए।

 

मुल्क  में  क़ुर्बानियों  की रस्म चलती ही रहे

सोच ये, अपने सरों को इस ज़मीं में बो गए।

 

हम  शहादत के चलन का पास रखने के लिए

मौत  की  आग़ोश  में भी मुस्कराकर  सो गए।

 

तुम  बुलंदी पर पहुँच  घर के कंगूरे  बन  गए

और हम बुनियाद के कुछ पत्थरों में खो गए।

 

ज़ीनत : शोभा | पास : लिहाज़ 


 

विशेष सूचना –

प्रस्तुत ब्लॉग-शृंखला में प्रकाशित आलेखों अथवा रचनाओं में अभिव्यक्त विचार लेखक के निजी हैं । उसके लिए वे स्वयं उत्तरदायी हैं । संपादक और प्रकाशक उससे सहमत हों, यह आवश्यक नहीं है । लेखक किसी भी प्रकार के शैक्षणिक कदाचार के लिए पूरी तरह स्वयं जिम्मेदार हैं ।

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