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एक जीवित शहीद : श्रीकृष्ण सरल

अपडेट करने की तारीख: 12 जन॰

डॉ. विकास दवे

 

' सरल-कीर्ति ' ब्लॉग शृंखला के इस अंक में प्रस्तुत है

प्रखर राष्ट्रवादी चिन्तक, सम्पादक देवपुत्र,

निदेशक मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी डॉ. विकास दवे का आलेख

लोकप्रिय बाल-पत्रिका ‘ देवपुत्र’ इन्दौर के क्रान्ति–अंक मईजून 1996, आवरण पृष्ठ से - साभार -

शीर्षक : एक जीवित शहीद : श्रीकृष्ण सरल

सम्पादक : कृष्णकुमार अष्ठाना  | लेखक : विकास दवे

 
 

एक जीवित शहीद : श्रीकृष्ण सरल


मैं अमर शहीदों का चारण

उनके यश गाया करता हूँ,

जो कर्ज राष्ट्र ने खाया है

मैं उसे चुकाया करता हूँ।

 

यह ओजमय उद्घोष जिस कण्ठ से निकला है, ये विचार जिस मस्तिष्क से बहे हैं उस व्यक्ति की कल्पना करना जितना सहज है प्रत्यक्ष दर्शन के बाद अपनी काल्पनिक भूल पर विश्वास करना उतना ही कठिन हो जाता है। सृजन की भट्टी में तपकर अपने शरीर को कुन्दन बनानेवाले श्रद्धेय श्रीकृष्ण सरल यथा नाम तथा गुण हैं। कुरते, पाजामे में दुबले–पतले उस व्यक्तित्व के दर्शन जब प्रथम बार किए तो विश्वास नहीं हुआ कि इतना साहित्य एक अकेला व्यक्ति लिख सकता है। किन्तु यह सत्य था। आज सरलजी के लेखन ने कई विश्व–कीर्तिमान बनाए हैं जो अपने आप में अनूठे हैं। यूँ साहित्य लेखन तो कई लोग कर चुके हैं, कर रहे हैं और करेंगे भी किन्तु केवल शहीदों और क्रान्तिकारियों पर काव्य लिखकर सरलजी एक ऐसी श्रेणी में आ जाते हैं जहाँ तक पहुँच पाना हर किसी के बस की बात नहीं होती। तभी तो सभी जीवित क्रान्तिकारी उनके प्रति एक विशेष श्रद्धा का भाव रखते हैं। महान क्रान्तिकारी श्री परमानन्दजी कहते हैं –“श्री सरलजी जीवित शहीद हैं। उनकी साहित्य साधना तपस्या कोटि की साधना है।”

 

निश्चय ही ‘क्रान्ति–गंगा’ के भगीरथ श्री सरलजी ने साहित्य साधना को तपस्या ही माना। ऋषि–मुनियों की तपस्या के बारे में पढ़ा था कि वे जब तपस्या किया करते थे तो चींटियाँ उनके शरीर पर घर बना लिया करती थीं। वैसी तो नहीं किन्तु कुछ–कुछ उसी तरह की धैर्ययुक्त तपस्या सरलजी की रही। कलम की शक्ति को तलवार की धार से बढ़कर तेज कर जब श्री सरलजी मिनट, घण्टों और दिनों की बात ही क्या महीनों तक लगातार लेखन करते थे तो पैरों के रक्त का प्रवाह एक ही ओर रहने से पैरों का सूज जाना तो मानो नित्य का ही कार्य होता था। साथ ही समाज से अपेक्षित सहयोग का न मिलना चींटियों के दाह से कहीं अधिक रहता था। किन्तु साहित्य पथ के इस पथिक ने कभी हार न मानी और सृजन के नए कीर्तिमान बनाते हुए गद्य तथा पद्य लेखन करते हुए अनेक विधाओं को कृतार्थ किया।

 

१ जनवरी १९१९ को एक सनाढ्य ब्राह्मण परिवार में जन्मे और ७७ बसन्त पार कर चुक इस महाकवि को अपने निजी जीवन में जो अपार कष्ट सहना पड़े, उनका विवरण यदि हम देखें तो मानस में निरालाजी के लिए कही हुई वे पंक्तियाँ गुंजायमान होने लगती हैं –

 

वह हिन्दी का लेखक था,

खून सुखाकर लिखता था।

 

साहित्य लेखन के लिए घी, दूध, मिठाई तथा बिस्तर तक का त्याग कर देनेवाले सर्जक के सामने ऐसी भी परिस्थितियाँ आईं जब पत्नी के सोने–चाँदी के गहनों को भी बाजार दिखाना पड़ा और बच्चों के कपड़ों को बेचना पड़ा। किन्तु इन कंटकाकीर्ण मार्गों पर चलते हुए भी कभी कदम लड़खड़ाए नहीं। अपने ही साहित्य को स्वयं लाद–लादकर भारत के अन्य प्रान्तों में ले जाकर ठेलागाड़ी पर लेकर बाजार में निकलना और फेरीवालों की तरह क्रान्ति–साहित्य को बेचने जैसे प्रसंग जितने भौतिक रूप से पीड़ादायी थे उतने ही आत्मिक सुख से भरे हुए थेहमारे लिए तो उनकी कल्पना तक कर पाना कठिन है। बदले में जो बड़े सुख मिले वे थे शहीद भगत सिंह की माताजी का पुत्रवत् स्नेह, अनेक जीवित क्रान्तिकारियों की भ्रातृवत् आत्मीयता और दुर्गा भाभी का दुलार। अफसोस है कि, मालवा की धीर–गम्भीर माटी की सौंधी सुगन्ध लिए इस कवि का सम्मान करना तो दूर रहा उनकी एक भी पुस्तक तक शासन खरीद नहीं सका। वैसे सरस्वती का सम्मान प्राप्त यह पुत्र कभी सत्ता के सम्मान का इच्छुक नहीं रहा।

 

आइए (देवपुत्र के) इस ‘क्रान्ति–अंक’ में सभी प्राणोत्सर्ग करनेवाले क्रान्तिकारियों के साथ हम इस जीवित–शहीद को स्मरण करें और ईश्वर से प्रार्थना करें कि यह क्रान्तिकारी कवि वर्षों– वर्षों तक जीए और हमारा मार्गदर्शन करता रहे। जीवेत शरदः शतम्।

 

सरलजी के विश्व–कीर्तिमान

·       विश्व में सर्वाधिक महाकाव्यों का सृजन

·       एक व्यक्ति द्वारा लिखा गया विश्व का सबसे बड़ा प्रबन्धकाव्य ‘क्रान्ति–गंगा’

·       क्रान्ति पर विश्व में सर्वाधिक लेखन

·       राष्ट्र–भक्ति पर विश्व में सर्वाधिक काव्य रचना

·       विश्व में सर्वाधिक सूक्ति–काव्य

·       युवा-शक्ति को अपने लेखन के माध्यम से जगाने का सर्वाधिक प्रयास


 

डॉ. विकास दवे

निदेशक मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी

बाल मासिक ‘देवपुत्र' इन्दौर, साक्षात्कार सहित अन्य साहित्यिक पत्रिकाओं का सम्पादन

सदस्यता : साहित्य अकादमी, सामान्‍य परिषद् सदस्‍य मध्यप्रदेश राज्य प्रतिनिधि

30 मौलिक पुस्तकें एवं 160 सम्पादित पुस्तकें, राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में 2500 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन

राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय गोष्ठियों 3000 से अधिक व्याख्यान, 88 से अधिक एम.फिल और पीएच.डी शोधार्थियों का निर्देशन

आकाशवाणी व दूरदर्शन से बाल कथाओं, साक्षात्कारों व वार्ताओं का प्रसारण

पेरिस विश्व साहित्य सम्मेलन में साहित्य गौरव सम्मान

फिजी विश्व हिन्दी सम्मेलन में साहित्य सेवा सम्मान सहित 150 से अधिक विशिष्ट साहित्यिक सम्मानों से अलंकृत

लेखक ई-परिचय - https://www.shrikrishnasaral.com/profile/dav/profile

 

विशेष सूचना –

प्रस्तुत ब्लॉग-शृंखला में प्रकाशित आलेखों अथवा रचनाओं में अभिव्यक्त विचार लेखक के निजी हैं । उसके लिए वे स्वयं उत्तरदायी हैं । सम्पादक और प्रकाशक उससे सहमत हों, यह आवश्यक नहीं है । लेखक किसी भी प्रकार के शैक्षणिक कदाचार के लिए पूरी तरह स्वयं जिम्मेदार हैं ।

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पुत्री डॉ धर्मेन्द्रसरल शर्मा

[ पौत्री श्री श्रीकृष्ण सरल ]

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